गुरु जी महाराज
गुरु जी महाराज
(Age 54 Yr. )
व्यक्तिगत जीवन
शिक्षा | अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | आध्यात्मिक गुरु |
स्थान | दुगरी गांव, मलेरकोटला, पंजाब, भारत, |
शारीरिक संरचना
ऊंचाई | लगभग 5.11 फ़ीट |
वज़न | लगभग 85 किग्रा |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | गंजा |
पारिवारिक विवरण
अभिभावक | पिता : श्री मस्त रामजी |
वैवाहिक स्थिति | Married |
भाई-बहन | भाई : 2 |
गुरुजी "दिव्य प्रकाश" हैं, जो धरती पर मानवता को आशीर्वाद देने और जागरूक करने के लिए आये थे। पंजाब के मलेरकोटला जिले के डूगरी गाँव में, 7 जुलाई 1954 का सूर्योदय गुरूजी के जन्म की घोषणा के साथ हुआ था। गुरूजी ने अपना प्रारम्भिक जीवन डूगरी के आसपास ही बिताया, वहीं स्कूल, कॉलेज गए और वहीं से अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। लोग कहते हैं कि उनमें बचपन से ही आध्यात्मिकता की एक चिंगारी थी।
उस चिंगारी को पूर्ण रूप से दीप बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगा; गुरुजी के आशीर्वाद की गंगा सैकड़ों हज़ारों लोगो का दु:ख-दर्द कम करने के लिए बहने लगी। गुरुजी जालंधर, चंडीगढ़, पंचकूला और नई दिल्ली सहित विभिन्न स्थानों पर गए और यहीं से सतसंग की शुरुआत की। यहाँ उनका आशीर्वाद लेने के लिए भारत और दुनिया के अन्य भागों से दूर-दूर से लोग आते थे। गुरुजी के सत्संग में चाय और लंगर प्रसाद दिया जाता था जिनमें गूरूजी का विशेष दिव्य आशीर्वाद और दिव्य शक्ति होती थी। भक्तों को गुरूजी की कृपा का अनुभव विभिन्न रूपों में हुआ, उनके असाध्य रोग दूर हुए और तमाम समस्याए -आर्थिक, मानसिक, शारीरिक, कानूनी आदि हल हुईं। कुछ भक्तों को तो देवताओं के दिव्य दर्शन भी हुए। कहते हैं गुरुजी के लिए कुछ भी असंभव नहीं था, क्योंकि उन्होंने ही भाग्य लिखा था और उसे वे बदल भी सकते थे।
संक्षिप्त परिचय
गुरुजी के दरवाजे सभी लोगों के लिए समान रूप से खुले थे - चाहे वे उच्च वर्ग के हो या निम्न वर्ग के, गरीब हो या अमीर, या किसी भी धर्म-सम्प्रदाय के हो। साधारण से साधारण आदमी, और बड़े से बड़ा आदमी उनके पास आशीर्वाद लेने आते थे। राजनेताओं, नौकरशाहों, सशस्त्र सेवा कर्मियों, डॉक्टरों, और अनेक व्यापारियों की लाईन लगी रहती थी। सब को उनकी ज़रूरत थी और गुरुजी ने बिना किसी भेदभाव के सबको समान रूप से आशीर्वाद दिया। विश्व के किसी भी कोने में बैठे श्रद्धालुओं को उतना ही फ़ायदा मिलता था जितना कि उनको जो लोग उनके पास बैठते थे और उनके चरण छूते थे। सबसे अहम बात थी भक्त का सम्पूर्ण आत्म-समर्पण और गुरुजी में अडिग विश्वास। गुरुजी दाता थे, उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं लिया और न ही लेने की उम्मीद रखी। "कल्याण कर्ता" गुरुजी कहते थे कि मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा। और हमेशा का मतलब यह नहीं कि सिर्फ़ इस जनम में बल्कि उन्का कहना था कि उनका आशीर्वाद भक्त के साथ भक्त के निर्वाण तक रहेगा।
गुरुजी ने कभी कोई उपदेश नहीं दिया। कभी कोई रस्म निर्धारित नहीं की। फिर भी उनका संदेश भक्त तक कैसे पहुँच जाता था, यह केवल भक्त ही बता सकता है। इस विशेष "सम्बंध" से भक्त को न केवल खुशी और स्फ़ूर्ति मिलती थी, बल्कि इसकी वजह से भक्त में एक गहरा बदलाव भी आता था। भक्त एक ऐसे स्तर पर पहुँच जाता था जहाँ आनंद, तृप्ति और शांति एक साथ आसानी से मिल जाते थे। गुरुजी के चारो ओर दिव्य सुगंध रहती थी, मानों गुलाब के फूल खिले हो। आज भी उनकी खुशबू उनके भक्तों को गूरूजी के होने का अहसास दिलाती है।
महासमाधि
31 मई 2007 को गूरूजी ने महासमाधि ले ली। उन्होंने कभी कोई उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया। क्योंकि "दिव्यता" का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता। वह कहते थे कि भक्त हमेशा उनके साथ "सीधे" जुड़ जाते हैं, प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से मेरे और निकट आते हैं। गुरुजी का एक मंदिर है, जिसे दक्षिण दिल्ली में भट्टी खानों पर स्थित "बडे मंदिर" के नाम से जाना जाता है। आज, जब गुरुजी अपने नश्वर शरीर में नहीं है, उनका आशीर्वाद अभी भी अपने भक्तों पर समान रूप से बरस रहा है।