बर्बरीक
बर्बरीक
व्यक्तिगत जीवन
धर्म/संप्रदाय | सनातन |
व्यवसाय | योद्धा |
स्थान |
पारिवारिक विवरण
अभिभावक | पिता : घटोत्कच |
Index
1. बर्बरीक की कथा |
2. अन्य नाम |
बर्बरीक महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और अहिलावती (नागकन्या माता) के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके अन्य भाई अंजनपर्व और मेघवर्ण का उल्लेख भी महाभारत में दिया गया है। बर्बरीक को उनकी माता ने यही सिखाया था कि सदा ही पराजित पक्ष से युद्ध करना और वे इसी सिद्धान्त पर लड़ते भी रहे। बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जिनके बल से पलक झपते ही महाभारत के युद्ध में भाग लेनेवाले समस्त वीरों को मार सकते थे। जब वे युद्ध में सहायता देने आये, तब इनकी शक्ति का परिचय प्राप्त कर श्रीकृष्ण ने इन्हें रणचण्डी को बलि चढ़ा दिया। महाभारत युद्ध की समाप्ति तक युद्ध देखने की इनकी कामना श्रीकृष्ण के वर से पूर्ण हुई और इनका कटा सिर अन्त तक युद्ध देखता और वीरगर्जन करता रहा।
कुछ कहानियों के अनुसार बर्बरीक सूर्यवर्चा नामक यक्ष थे, जिनका पुनर्जन्म एक मानव के रूप में हुआ था। बर्बरीक गदाधारी भीमसेन का पोता और घटोत्कच के पुत्र थे। इनके गुरु श्री कृष्ण थे और बर्बरीक भगवान शिव के परम भक्त थे।
बर्बरीक की कथा
बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध-कला अपनी माता से सीखी। माॅं आदिशक्ति की तपस्या कर उन्होंने उनसे त्रिलोकों को जीतने में सक्षम धनुष प्राप्त किया साथ ही असीमित शक्तियों को भी अर्जित कर लिया तत्पश्चात् अपने गुरु श्रीकृष्ण की आज्ञा से उन्होंने कई वर्षों तक महादेव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और भगवान शिव शंकर से तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए और 'तीन बाणधारी' का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया।
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, अतः यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने लीले घोड़े, जिसका रङ्ग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।
सर्वव्यापी श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हँसी भी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तरकस में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें चुनौती दी कि इस पीपल के पेड़ के सभी पत्रों को छेदकर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया।
तीर ने क्षण भर में पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और श्रीकृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए वरना ये आपके पैर को चोट पहुँचा देगा। श्रीकृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराया कि वह युद्ध में उस ओर से भाग लेगा जिस ओर की सेना निर्बल हो और हार की ओर अग्रसर हो। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।
ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा। श्रीकृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिए चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की दृढ़ता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और श्रीकृष्ण के बारे में सुनकर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया।
उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिए के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतएव उनका शीश दान में मांगा। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी बहस होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्रीकृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान कार्य किया है। उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था। यह सुनकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वर दिया और कहा कि तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे खाटू नामक ग्राम में प्रकट होने के कारण खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्धि पाओगे और मेरी सभी सोलह कलाएं तुम्हारे शीश में स्थापित होंगी और तुम मेरे ही प्रतिरूप बनकर पूजे जाओगे।
अन्य नाम
- बर्बरीक : खाटूश्यामजी के बचपन का नाम बर्बरीक था। कृष्ण द्वारा दिए गए श्याम नाम से पहले उनकी मां और रिश्तेदार उन्हें इसी नाम से बुलाते थे।
- शीश के दानी: शाब्दिक अर्थ: "सिर का दाता"; उपरोक्त सम्बंधित कथा के अनुसार.
- हारे का सहारा: शाब्दिक अर्थ: "हारे का समर्थन"; अपनी माँ की सलाह पर बर्बरीक ने निश्चय किया कि जिसके पास शक्ति कम है और वह हार रहा है, उसका वह समर्थन करेगा। इसलिए उन्हें इस नाम से जाना जाता है। इससे एक लोकप्रिय कविता भी सामने आई है जो अक्सर कठिन समय से गुजर रहे लोगों द्वारा गाया जाता है: हारे का सहारा, खाटूश्याम हमारा [हम उदास हैं, लेकिन हमें चिंता नहीं करनी चाहिए; खाटूश्याम हमारे साथ हैं!]
- तीन बाण धारी: शाब्दिक अर्थ: "तीन बाणों का धारक"; संदर्भ उन तीन अचूक तीरों का है जो उन्हें देवी कामाख्या से वरदान के रूप में प्राप्त हुए थे। ये बाण पूरी दुनिया को तबाह करने के लिए काफी थे। इन तीन बाणों के नीचे शीर्षक लिखा है माम् सेव्यं पराजितः।
- लाखा-दातारी: शाब्दिक अर्थ: "परोपकारी दाता"; जो अपने भक्तों को उनकी जरूरत की हर चीज देने और मांगने से कभी नहीं हिचकिचाते।
- लीला के असवार: शाब्दिक अर्थ: "लीला का सवार"; यह उनके नीले रंग के घोड़े का नाम है। कई लोग इसे नीला घोड़ा या "नीला घोड़ा" कहते हैं।
- खाटू नरेश: शाब्दिक अर्थ: "खाटू के राजा"; वह जिसने खाटू पर राज किया और पूरे ब्रह्मांड पर।
- कलयुग के अवतार: शाब्दिक अर्थ: "कलियुग के भगवान"; कृष्ण के अनुसार वह भगवान होंगे जो कलियुग में अच्छे लोगों को बचाएंगे।
- श्याम प्यारे: शाब्दिक अर्थ: “प्रिय श्याम”
- बलिया देव: शाब्दिक अर्थ: "वह देवता जिसने अपना बलिदान दिया"; गुजरात के अहमदाबाद के वासना स्थित मंदिर में नवजात बच्चों को आशीर्वाद दिया जाता है।
- मोरछड़ीधारक: शाब्दिक अर्थ: “मोर पंख से बनी छड़ी को धारण करने वाला”
- श्याम बाबा : मारवाड़ी समाज के बीच प्रचलित नाम।
- बारिश का देवता: शाब्दिक अर्थ: "बारिश के देवता"; जो वर्षा को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित करता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी में कमरूनाग मंदिर का प्रचलित नाम।
- यलंबर: यलंबर एक किरात योद्धा और नेपाल में किरात साम्राज्य का पहला राजा था।
- आकाश भैरव: शाब्दिक अर्थ: "आकाश के देवता"; भगवान शिव के कई खतरनाक भैरव रूपों में से एक।
- सावा भक्कु देवा: शाब्दिक अर्थ: "आकाश का संरक्षक"; काठमांडू में लिच्छवी समुदाय के बीच प्रचलित नाम
- वंगा द्या: शाब्दिक अर्थ: "आकाश सुरक्षा के देवता"; नेपाल में किरात लोगों का पहला पैतृक राजा।
- हतु द्याह: शाब्दिक अर्थ: "शुद्ध शराब भगवान"; जो आशीर्वाद के रूप में शराब देता है, नेवारी भाषा में प्रचलित नाम
- अजु द्याह: शाब्दिक अर्थ: "पैतृक देवता"; आमतौर पर नेपाल के महाराजन समुदाय के पूर्वज के रूप में जाना जाता है