रोमिला थापर
रोमिला थापर
(Age 91 Yr. )
व्यक्तिगत जीवन
शिक्षा | पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में बी.ए. और 1958 में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज, लंदन विश्वविद्यालय से ए. एल. बाशम के तहत भारतीय इतिहास में द्वितीय स्नातक ऑनर्स की डिग्री और डॉक्टरेट की उपाधि |
व्यवसाय | इतिहासकार, प्रोफेसर, लेखक |
स्थान | लखनऊ, ब्रिटिश भारत, |
शरीरिक संरचना
ऊंचाई | लगभग 5.3 फ़ीट |
वज़न | लगभग 60 किग्रा |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | स्लेटी |
पारिवारिक विवरण
अभिभावक | पिता : दया राम थापर (सेना चिकित्सक) |
भाई-बहन | भाई: रोमेश थापर (बड़े; पत्रकार) |
पसंद
खेल | घुड़सवारी, तैरना |
रोमिला थापर (जन्म 30 नवंबर 1931) एक भारतीय इतिहासकार हैं। उनके अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र प्राचीन भारत है, एक ऐसा क्षेत्र जिसमें वह पूर्व-प्रतिष्ठित हैं। थापर नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, एमेरिटा के प्रोफेसर हैं।
परिचय
रोमिला थापर का जन्म ३० नवम्बर १९३१ को लखनऊ में एक संपन्न पंजाबी परिवार में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद, इन्होनें लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ ओरिएण्टल एंड अफ्रीकन स्टडीज से ए. एल. बाशम के मार्गदर्शन में १९५८ में पीएचडी की उपाधि अर्जित की। इन्होंने अध्यापन की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय से की 1963 में दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में रीडर के रूप में नियुक्त हुई तथा 1970 में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ प्रोफेसर बनीं तथा 1993 में सेवानिवृत्ति के बाद से वहीं प्रोफेसर एमेरिट्स के पद पर भी उन्होंने कार्य किया।
लेखन कार्य
रोमिला थापर का लेखन कार्य मुख्यतः प्राचीन भारत के इतिहास पर केन्द्रित रहा है। उन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास को एक नयी दृष्टि से देखा है और प्राच्यवादी निरंकुशता, आर्य प्रजाति और अशोक की अहिंसा संबंधी स्थापित मान्यताओं का खंडन करते हुए अनुसंधान का दायरा विकसित किया है। विशेषतः सम्राट अशोक के काल पर उन्होंने विस्तार से विचार किया है। उनके कार्य सामाजिक इतिहास के क्षेत्र में अग्रगण्य रहे हैं। आगे चलकर उन्होंने संस्कृति, समाज एवं इतिहास के बीच कड़ियों का पता लगाया। उन्होंने इसका भी अन्वेषण किया कि इतिहास कैसे बनते और प्रस्तुत किये जाते हैं। अपने लेखन से उन्होंने सचेत किया है कि राजनीतिक लाभ के लिए इतिहास की गलत व्याख्या न की जाय। उन्होंने राजनीति में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता पर बल दिया है।[
मानद उपाधियाँ एवं सम्मान
रोमिला थापर कॉर्नेल विश्वविद्यालय, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और पेरिस में कॉलेज डी फ्रांस में विजिटिंग प्रोफेसर रही हैं। वे 1983 में भारतीय इतिहास कांग्रेस की जनरल प्रेसिडेंट और 1999 में ब्रिटिश अकादमी की कोर्रेस्पोंडिंग फेलो चुनी गयीं।
रोमिला थापर को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें सन् 1993 में परेदेनिया विश्वविद्यालय (श्रीलंका) से, सन् 1993 में शिकागो विश्वविद्यालय से, सन् 2001 में इंस्टिट्यूट नेशनल डेस लैंग्स एट सिविलाइजेशंस ओरिएंटल (पेरिस) से और सन् 2002 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानद उपाधियाँ प्रदान की गयीं। सन् 1997 में उन्हें फुकोका सांस्कृतिक पुरस्कार दिया गया था।
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें
- अशोक और मौर्य साम्राज्य का पतन-1963 (ग्रंथ शिल्पी (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, लक्ष्मी नगर, दिल्ली)
- प्राचीन भारत-1966 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
- प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास-1978 (ग्रंथ शिल्पी, दिल्ली)
- वंश से राज्य तक-1983 (ग्रंथ शिल्पी, दिल्ली)
- आदिकालीन भारत की व्याख्या-1992 (ग्रंथ शिल्पी, दिल्ली)
- मौर्य साम्राज्य का पुनरावलोकन (ग्रंथ शिल्पी, दिल्ली)
- सोमनाथ : इतिहास एक : स्वर अनेक (ग्रंथ शिल्पी, दिल्ली)
- पूर्वकालीन भारत ('प्राचीन भारत' का संशोधित एवं विस्तृत परिवर्धित संस्करण, हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय)