सुभाष चन्द्र बोस: स्वतंत्रता सेनानी, देश सेवा, जीवनी, जन्म और पारिवारिक जीवन

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सुभाष चन्द्र बोस

नाम :सुभाष चन्द्र बोस
उपनाम :नेताजी
जन्म तिथि :23 January 1897
(Age 48 Yr. )
मृत्यु की तिथि :18 August 1945

व्यक्तिगत जीवन

शिक्षा कला स्नातक (बी.ए.)
जाति कायस्थ
धर्म/संप्रदाय सनातन धर्म
राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय राजनीतिज्ञ, सैन्य नेता, सिविल सेवा अधिकारी और स्वतंत्रता सेनानी
स्थान कटक, ओड़िशा सम्भाग, बंगाल प्रान्त, ब्रितानी भारत (वर्तमान के भारतीय राज्य ओडिशा के कटक जिले में),

शारीरिक संरचना

ऊंचाई 5 फीट 9 इंच
वज़न 75 किग्रा (लगभग)
आँखों का रंग काला
बालों का रंग स्लेटी (अर्ध-गंजा)

पारिवारिक विवरण

अभिभावक

पिता- जानकीनाथ बोस
माता- प्रभावती देवी

वैवाहिक स्थिति विवाहित
जीवनसाथी

एमिली शेंकल

बच्चे/शिशु

बेटी- अनीता बोस फाफ

भाई-बहन

भाई- सतीश चंद्र बोस, सुरेश चंद्र बोस, सुधीर चंद्र बोस, डॉ. सुनील चंद्र बोस, सुभाष चंद्र बोस, शैलेश चंद्र बोस और संतोष चंद्र बोस

सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया "जय हिन्द" का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं।

जन्म और पारिवारिक जीवन

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे।

शिक्षादीक्षा से लेकर आईसीएस तक की यात्रा

कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर 1909 में उन्होंने रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया। 1915 में उन्होंने इण्टरमीडियेट की परीक्षा बीमार होने के बावजूद द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1916 में जब वे दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) में बीए के छात्र थे किसी बात पर प्रेसीडेंसी कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया सुभाष ने छात्रों का नेतृत्व संभाला जिसके कारण उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से एक साल के लिये निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया।1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था।

पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से चौबीस घण्टे का समय यह सोचने के लिये माँगा ताकि वे परीक्षा देने या न देने पर कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। सारी रात इसी असमंजस में वह जागते रहे कि क्या किया जाये। आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गये। उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए पास कर ली।

स्वतन्त्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य

कोलकाता के स्वतन्त्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर सुभाष दासबाबू के साथ काम करना चाहते थे। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और महात्मा गांधी से मिले। मुम्बई में गांधी मणिभवन में निवास करते थे। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गाँधी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। गाँधी ने उन्हें कोलकाता जाकर दासबाबू के साथ काम करने की सलाह दी। इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दासबाबू से मिले।

उन दिनों गाँधी ने अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस आन्दोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाष इस आन्दोलन में सहभागी हो गये।

26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। जब सुभाष जेल में थे तब गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया।

कारावास

अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने का कारावास हुआ।

फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन

ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था, जो 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारत कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा। वे कांग्रेस में अपने वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे। फॉरवर्ड ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्वों को लाना था, ताकि वह समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के पालन के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अर्थ का प्रसार कर सकें।

आज़ाद हिंद फौज

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजादी के लिए संघर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास आजाद हिंद फौज का गठन और कार्यकलाप था, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना या आईएनए के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय क्रांतिकारी राश बिहारी बोस जो भारत से भाग कर कई वर्षों तक जापान में रहे, उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में रहने वाले भारतीयों के समर्थन के साथ भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की थी।

पुरस्कार

  • 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित

सामान्य प्रश्न

प्रश्न: क्या सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे?
उत्तर: हाँ, सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे।

प्रश्न: आजाद हिन्द फौज का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: आजाद हिन्द फौज का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराना था।

प्रश्न: सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: आधिकारिक तौर पर, माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 को एक विमान हादसे में नेताजी की मृत्यु हो गई थी। हालांकि, उनकी मृत्यु के आसपास कई रहस्य हैं।

प्रश्न: क्या नेताजी की कोई रचनाएँ हैं?
उत्तर:  उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें "भारतीय राष्ट्रीयता का संघर्ष" और "आजाद हिन्द" शामिल हैं। ये पुस्तकें उनके विचारों और स्वतंत्रता संग्राम के दृष्टिकोण को समझने में महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न: क्या नेताजी ने जर्मनी में रहने के दौरान विवाह किया था?
उत्तर: जी हां, जर्मनी में रहने के दौरान नेताजी ने ऑस्ट्रियाई महिला एमिली शेनके से विवाह किया था। उनकी एक बेटी भी थी, जिसका नाम अनिता बोस रखा गया।

प्रश्न: नेताजी के कुछ प्रसिद्ध नारे कौन से हैं?
उत्तर: नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कई प्रेरक नारे दिए, जिनमें से कुछ आज भी काफी प्रचलित हैं, जैसे - "जय हिंद!", "दिल्ली चलो!", "मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा!" ये नारे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला को दर्शाते हैं।

Readers : 103 Publish Date : 2024-07-09 04:09:55